सलील चौधरी आणि योगेश यांनी 'ती दोन गाणी' (मुकेश आणि मन्ना डे) माझ्या जीवनात तरी अजरामर केली.....
किती लहान होते ते त्यावेळी... १९७० साली अवघे २७ वर्षांचे .... दहा /आकरा वर्षाच्या मला सुद्धा ते अंतर्मुख करून गेले ....
मिरजेला देवल टॉकीज ला तो सिनेमा १९७१ साली बघितला आणि बाबू मोशाय पेक्षा मला ती गाणी जास्त आवडली होती .... बाहेर आलो ते ती गाणी गुणगुणत ... मूड: चेकोव्ह म्हणतो तसा दुःखी पण आनंदी!
ती दोन गाणी नसती तर आनंद हा लक्षणीय सिनेमा झाला नसता....
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
भर आई बैठे बैठे, जब यूँ ही आँखें
भर आई बैठे बैठे, जब यूँ ही आँखें
तभी मचल के, प्यार से चल के
चुपके से आए
कहीं से निकल आए, जनमों के नाते
कहीं से निकल आए, जनमों के नाते
अपना ही होके सहे दर्द पराये, दर्द पराये
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
(...)
दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे
दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे
खो गए कैसे मेरे, सपने सुनहरे
ये मेरे सपने, यही तो हैं अपने
मुझसे जुदा न होंगे इनके ये साये, इनके ये साये
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए"
No comments:
Post a Comment
Welcome!
If your comment (In Marathi, Hindi or English) is NOT interesting or NOT relevant or abusive, I will NOT publish it.
Comment may get published but not replied to.
If you are pointing out a mistake in the post and if I agree with your claim, I will change the post and acknowledge your contribution.
Only if you agree to this, post your comment.