दुर्गा भागवत:
"... शेजवलकर नावाचा पडेल, रडेल नि सडेल माणूस गेला आहे; पण शेजवलकर या नावाचा दुसरा एक गुणी संपादक नि शिवचरित्राचा साक्षेपी टिपणकार मात्र शिल्लक आहे- तो तसा राहीलही!"
(पृष्ठ १७८, 'आठवले तसे', १९९१- २०१४)
(पृष्ठ एकतीस, "त्र्यंबक शंकर शेजवलकर: निवडक लेखसंग्रह", संग्राहक: ह वि. मोटे , परिचय : गं दे खानोलकर, १९७७)
कृतज्ञता : शेजवलकर यांच्या साहित्याचे कॉपीराईट होल्डर्स
टीप :
व्रजन्ति ते मूढधियः पराभवं भवन्ति मायाविषु ये न मायिनः ।
प्रविश्य हि घ्नन्ति शठास्तथाविधानसंवृताङ्गान्निशिता इवेषवः ।। १.३० ।।
अर्थ: वे मूर्ख बुद्धि के लोग पराजित होते हैं जो (अपने) मायावी (शत्रु) लोगों के साथ मायावी नहीं बनते, क्योंकि दुष्ट लोग उस प्रकार के सीधे-सादे निष्कपट लोगो में, उघाड़े हुए अंगों में तीक्ष्ण बाणों की भांति प्रवेश करके उनका विनाश कर देते हैं ।
( भारवि कृत किरातार्जुनीय महाकाव्य )
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